आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण

आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण


    आधुनिक भारतीय आर्य भाषा

    संसार के समस्त भाषा - कुलों में  भारतीय भाषाकुल का और इसमें भारतीय आर्य भाषाओं का विशेष  महत्व है। प्राचीन भारतीय आर्य  भाषा से मध्ययुगीन भारतीय आर्य भाषाओं का उद्भव और उससे आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का विकास हुआ है। वर्तमान समय की आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में पर्याप्त विकास हुआ है। इसकी विभिन्न शाखाओं में भरपूर साहित्य रचना हो रही है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर इस परिवार की विभिन्न भाषाओं का वर्गीकरण किया गया है।

    आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण

    आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं  के वर्गीकरण पर विभिन विद्वानों (हार्नले, बेबर, डॉ. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन , डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ.धीरेंद्र वर्मा, सीताराम चतुर्वेदी, डॉ.भोलानाथ तिवारी) आदि द्वारा विभिन्न रूपों में विचार किया गया है। यहां प्रमुख का उल्लेख किया जा रहा है।


    [1] हार्नले का वर्गीकरण

    भारतीय आर्य भाषाओं के वर्गीकरण के संबंध में  प्रथम नाम डॉ.ए.एफ.  आर .हार्नले का आता है। उन्होंने भारतीय आर्य भाषाओं के अध्ययन के आधार पर पिछली सदी में यह सिद्धांत रखा था कि भारत में आर्य कम से कम दो बार आए। इनके भारत  प्रथम आगमन का  मार्ग सिंधु पार कर पंजाब से रहा है। दूसरी बार इन का आगमन कश्मीर की ओर से हुआ है। नवागत आर्य उत्तर से आकर प्राचीन आर्यों के स्थान पर जम गए और पूर्वागत आर्य पूरब, दक्षिण और पश्चिम में फैल गए। इस प्रकार नवागत आर्य भीतरी कहे जा सकते हैं और पूर्वागत आर्य  बाहरी। इस  प्रकार हार्नले  ने आर्यों  के  बहिरंग तथा अंतरंग वर्गों के आधार पर ही उनकी भाषाओं को भी वर्गीकृत किया है। इस आधार पर हार्नले ने अंतरंग और बहिरंग दो वर्ग बनाएं ।


    हार्नले ने "  Comparative Grammar of the Gaudian Languages"में एक भिन्न वर्गीकरण भी प्रस्तुत किया है।


    उन्होंने आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं को चार  वर्गों में विभाजित किया है जो निम्नलिखित हैं-


    (१) पूर्वी गौडियन

    पूर्वी हिंदी, (बिहारी सहित), बंगला, आसामी, उड़िया।


    (२) पश्चिमी गौडियन

    पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती , सिंधी, पंजाबी।


    (३) उत्तरी गौडियन

    गढ़वाली, नेपाली आदि पहाड़ी।


    ( ४) दक्षिणी गौडियन

           मराठी।


    [2] डॉ. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन का वर्गीकरण 

    डॉ.जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का समुचित सर्वेक्षण करके उनकी विशेषताओं के आधार पर वर्गीकरण करने का प्रयत्न किया है। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए दो वर्गीकरण इस प्रकार हैं-


    (क) ग्रियर्सन का पहला वर्गीकरण

    डॉ.जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने सर्वप्रथम 1920  में (लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया -भाग -1 तथा बुलेटिन ऑफ द स्कूल ऑफ ओरियंटल स्टडीज, लंण्डन इन्स्टिट्यूशन -भाग -1 खंड 3) में आपना  पहला  वर्गीकरण प्रस्तुत किया। इसमें तीन वर्ग हैं-


    (१) बाहरी उपशाखा

    (क) पश्चिमोत्तरी समुदाय

           लहंदा,सिंधी


    (ख) दक्षिणी समुदाय

           मराठी


    (ग) पूर्वी समुदाय

          उड़िया, बंगाली  आसामी,

          बिहारी


    (२) मध्यवर्गी उपशाखा

    (क) मध्यवर्ती समुदाय

           पूर्वी हिंदी


    (३) भीतरी उपशाखा

    (क) केंद्रीय समुदाय- पश्चिमी हिंदी, पंजाबी, गुजराती, भीली, खानदेशी

    (ख) पहाड़ी समुदाय- पूर्वी पहाड़ी, मध्यवर्ती पहाड़ी, पश्चिमी पहाड़ी


    (ख) ग्रियर्सन का दूसरा वर्गीकरण

    डॉक्टर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने (India  Antiquary , Supplement of Feb.1931) में एक नया वर्गीकरण सामने रखा जो इस प्रकार है-


    (१) मध्यदेशी- पश्चिमी हिंदी


    (२) अन्तर्वर्ती

    (क) पश्चिमी हिंदी से विशेष घनिष्ठता वाली- पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, पहाड़ी (पूर्वी, पश्चिमी, मध्य)

    (ख) बहिरंग से संबद्ध- पूर्वी हिंदी


    (३) बहिरंग भाषाएं

    (क) पश्चिमोत्तरी- लहंदा, सिंधी

    (ख) दक्षिणी मराठी


    (ग)  पूर्वी बिहारी, उड़िया, बंगाली, असमी


    (ग) डॉ. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन का तीसरा वर्गीकरण 

    डॉ. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन का तीसरा वर्गीकरण (१) ध्वनि (२) व्याकरण या रूप तथा (३) शब्द समूह इन तीन बातों पर आधारित है।


    [3] डॉ .सुनीति कुमार चटर्जी का वर्गीकरण

    डॉ .सुनीति कुमार चटर्जी का वर्गीकरण  "Origion and Development of Bangali Language" में इस प्रकार है-


    (१) उदीच्य

         सिंधी, लहंदा, पंजाबी


    (२) प्रतीच्य

         गुजराती, राजस्थानी


    (३) मध्यदेशीय

          पश्चिमी हिंदी


    (४) प्राच्य

          पूर्वी हिंदी , बिहारी,  उड़िया

          असमिया , बंगाली


    (५) दाक्षिणात्य

          मराठी


    डॉ. भोलानाथ तिवारी जी लिखते हैं-

    " डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी पहाड़ी को राजस्थानी का प्राय: रूपांतर-सा  मानते हैं। इसलिए उसे यहां अलग स्थान नहीं दिया है ।"


    [4] डॉ. धीरेंद्र वर्मा का वर्गीकरण

    डॉ.धीरेंद्र वर्मा ने डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के वर्गीकरण में सुधार करते हुए अपना निम्नांकित वर्गीकरण प्रस्तुत किया-


    (१) उदीच्य

          सिंधी ,लहंदा, पंजाबी


    (२) प्रतीच्य

         गुजराती


    (३) मध्यप्रदेशीय

          राजस्थानी, पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, बिहारी।


    (४) प्राच्य

         उड़िया ,असमिया, बंगला


    (५) दक्षिणात्य

          मराठी


    [5] सीताराम चतुर्वेदी का वर्गीकरण

    सीताराम चतुर्वेदी ने संबंध सूचक परसर्गों के आधार पर अपना वर्गीकरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है-

    (१) का-   हिंदी, पहाड़ी, जयपुरी, भोजपुरी

    (२) दा-    पंजाबी ,लहंदा

    (३) जो-   सिंधी, कच्छी

    (४) नो-    गुजराती

    (५) एर-   बंगाली, उड़िया, आसामी


    [6] डॉ. भोलानाथ तिवारी का वर्गीकरण

    डॉ.भोलानाथ तिवारी ने क्षेत्रीय तथा संबंद्ध अपभ्रंशों के आधार पर अपना वर्गीकरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है-

    क्रम

    अपभ्रंश

    आधुनिक भाषाएं

    1.

    शौरसैनी (मध्यवर्ती )

    पश्चिमी हिंदीराजस्थानीपहाड़ीगुजराती

    2.

    पैशाची (पश्चिमोत्तरी)

    लहंदा,पंजाबी

    3.

    ब्राचड़

    (पश्चिमोत्तरी)

    सिंधी

    4.

    महाराष्ट्री

    (दक्षिणी)

    मराठी

    5.

    मागधी

    (पूर्वीय)

    बिहारी,बंगाली,उड़िया,असमिया    

    6.

    अर्द्धमागधी

    (मध्य पूर्वीय)

    पूर्वी हिंदी

    7.

    खस

    पहाड़ी


       Written By:

    Dr. Gunjan A. Shah 
    Ph.D. (Hindi)

    Hindi Lecturer (Exp. 20+)

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