कबीर का जीवन परिचय | Kabir Das Ka Jivan Parichay
कबीर का जीवन चरित्र | kabir das ka jivan parichay
भारतीय महापुरुषों के जीवनचरित के संबंध में प्राय बड़ी गड़बड़ी देखने को मिलती है। उनके लौकिक जीवन की सूचना देनेवाली निश्चित घटनाओं, तिथियों आदि का उल्लेख बहुत कम मिलता है। संत, महात्माओं और कवियों के संबंध में तो और भी कम सामग्री उपलब्ध है। जायसी, सूरदास आदि की जीवनी आज भी अपूर्ण ज्ञात है। और यही बात कबीर के संबंध में भी कही जा सकती है। उनके जन्म-समय, जन्म-स्थान, निधन-समय ,परिवार, माता -पिता आदि के संबंध में विभिन्न मत और जनश्रुतियां प्रचलित है। कबीरदास के व्यक्तित्व का निरूपण हमें विभिन्न रूपों में देखने को मिलता है।
कबीर का जन्म समय
कबीर के जन्म को लेकर पर्याप्त मतभेद मिलते हैं।
( १ ) बील के मतानुसार कबीर का जन्म समय १४९० ई. के लगभग हुआ था।
( २ ) फर्कुहर के अनुसार इनका जन्म समय१४०० ई. माना जाता है।
( ३ ) मेकालिफ के अनुसार इनका जन्म समय१३९८ ई. है।
( ४ ) वेसकट,स्मिथ तथा भण्डारकर के मत से इनका जन्म समय १४४० ई. माना जाता है।
( ५ ) अन्तस्साक्ष्य और 'कबीर चरित्रबोध' के प्रमाण से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि कबीर का आविर्भाव १३९८ई. में हुआ था ।
( ६ ) अधिकतर विद्वान कबीरपन्थियों के एक उल्लेख के आधार पर कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा सोमवार सं. १४५५ में होना स्वीकार करते हैं ।
कबीरदास जी का जन्म
कबीर के जन्म के संबंध में विभिन्न दन्तकथाएं प्रचलित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कबीर जन्म सरोवर में एक कमल पर हुआ था । एक अन्य जनश्रुति से पता चलता है कि कबीर का जन्म काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था । जिसने लोकापवाद के भय से इन्हें काशी में लहरतारा तालाब के किनारे डाल दिया था। भाग्यवश नीरू नामक एक जुलाहा अपनी पत्नी नीमा के साथ उधर से निकला, जो इन्हें उठाकर घर ले गया और वहीं कबीर का पालन-पोषण हुआ । डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी मानते हैं कि कबीर काशी की जुलाहा जाति में पालित और वर्धित हुए । उनका कहना है कि इस प्रकार कबीर में हिंदू और मुस्लिम, दोनों जातियों के संस्कार विद्यमान थे ।
कबीरपंथियों में इनके जन्म के विषय में यह पद्य प्रसिद्ध है -
"चौदह सौ पचपन साल गए,चंद्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसात को पूरनमासी तिथि प्रकट भए ।।
घन गरजें दामिनि दमके बूंदे बरषें झर लाख गए ।
लहर तलाब में कमल खिले तहं कबीर भानु प्रगट भए ।। "
कबीर का जन्म-स्थान
कबीर के जन्म-स्थान के संबंध में तीन मत हैं:
मगहर, काशी और आजमगढ़ में बेलहरा गांव।मगहर के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि कबीर ने अपनी रचना में वहां का उल्लेख किया है-
"पहिले दरसन मगहर पायो पुनि कासी बसे आई "