तुलसी के साहित्य में प्रकृति सौंदर्य | रामचरितमानस में पर्यावरणीय सम्पन्नता | तुलसी के रामचरित मानस में प्रकृति चित्रण | तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस में प्रकृति एवं पर्यावरण
गोस्वामी तुलसीदास मूलत: भक्त कवि थे। अत: प्रकृति को उन्होंने भक्ति के संदर्भ में ही विशेष तौर पर देखा है ,फिर भी प्रबंध रचना की दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' में प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण किया है। ये प्रकृति चित्रण मोटे तौर पर हमें निम्न रूपों में दिखाई देता हैं-
(१) प्रकृति का उद्दीपन स्वरूप
(२) प्रकृति का उपदेशात्मक रूप
(३) आलंकारिक प्रकृति चित्रण
(४) प्रकृति का आलंबन रूप
( १ ) प्रकृति का उद्दीपन स्वरूप
तुलसीदास ने संयोग और वियोग के निरूपण में प्रकृति को माध्यम के रूप में चुना है । अर्थात् प्रकृति के माध्यम से उन्होंने संयोग और वियोग के चित्र उद्घाटित किये है। उदाहरण के तौर पर जनक वाटिका प्रसंग में राम और सीता के मिलन से संयोगात्मक प्रकृति का स्वरूप अत्यंत अनूठा बन पड़ा है।
जनक वाटिका का प्रकृति वर्णन करते-करते तुलसी सीता के अप्रतिम सौंदर्य की तुलना करने लगते है तो उनकी दृष्टि में प्रकृति भी फीकी नजर आने लगती है। इसी तरह 'रामचरितमानस' में सीता हरण के प्रसंग में राम का विरह रूप तुलसीदास ने प्रकृति के माध्यम से ही निरूपित किया है। एक ओर जहां राम शक्ति और सौंदर्य के प्रतिरूप है वहां तुलसी ने संवेदना के स्तर पर राम को प्रलाभ करते हुए दिखा दिया है। वे पेड़-पौंधे ,पशु -पक्षी सभी से सीता का पता पूछने लगते हैं-
" हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी ।
तुम्ह देखी सीता मृगनैनी ।।"
आगे चलकर इसी भाव के विस्तार में तुलसी कहते हैं -
" नारी सहित सब खग मृग बंदा
मानहुं मोरि करत है निंदा । "
कहने की आवश्यकता नहीं कि तुलसी के काव्य में प्रकृति का उद्दीपन रूप सटीक रूप से चित्रित हुआ है ।प्रकृति को भूमिका बना- कर कवि ने पात्रों की मानसिक दशा का भी वर्णन किया है। राजा दशरथ की मानसिक स्थिति का वर्णन करते हुए तुलसीदास कहते हैं-
" पीपर पात सरिस मन डोला ।"
अर्थात् राजा दशरथ का मन पीपल के पत्ते की तरह कांप उठा ।पीपल का पत्ता हवा में जिस तरह कांपता है वैसे ही राजा दशरथ का मन भी कैकयी के शब्द प्रहारों से कैसे कांप उठता है इसका यथार्थ वर्णन कवि ने किया है।
प्रकृति को कवि ने कहीं-कहीं सांकेतिक रूप भी प्रदान किया है। खासकर तुलसीदास ने वर्षाऋतु के वर्णन में अपनी विशेष रुचि प्रदर्शित की है। जो वर्षाऋतु संयोगावस्था में आनंद और उल्लास पैदा करती है वहीं वियोगावस्था में हृदय में कसक पैदा करती है। सीता के वियोग में गरजते हुए बादलों को देखकर राम का मन कसक उठता है-
" घन घमण्ड नभ गरजत घोरा,
प्रियाहीन डरपत मन मोरा ।"
सांकेतिक भाव यह है कि घन रूपी घमंड वाले बादल आकाश में गरज रहे हैं, ऐसी स्थिति में अकेली सीता पर क्या गुजर रही होगी यह सोचकर राम का मन भयभीत हो उठता है।
तुलसीदास ने राम और सीता के वियोग निरूपण में प्रकृति का भरपूर प्रयोग किया है प्रकृति के बड़े ही संवेदना पूर्ण चित्र प्रस्तुत किए हैं। इतना होने पर भी हमें यह तो मानना ही पड़ेगा कि प्रकृति का उद्दीपन स्वरूप जो तुलसी की कलम से निरूपित हुआ है वह परंपरागत है । उसमें प्राय: मौलिकता का अभाव है लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कवि ने कहीं भी अतिश्योक्तिपूर्ण या भड़कीले चित्रों का अंकन नहीं किया है। कवि ने सीधी -सच्ची बातों को प्रकृति के सीधे- सादे चित्रों के माध्यम से व्यक्त कर दिया है ।